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अमीर मुआवियां की हक़ीक़त – क़ुरान और सही हदीस की रोशनी में – Muawiya kon tha ?

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Muawiya ki haqiqat – Quran aur Hadees ki roshni me

muawiya ki haqiqat,

अस्सलामों अलैकुम दोस्तों, 

अमीर मुआविया अबू सुफ़ियान और हिंदा के बेटे है, जिन्होंने रसूलल्लाह सल्लाहों अलैहि वसल्लम से बहोत से जंगे की थी, और जंगे ओहद में हज़रत हमज़ा रज़ि० को शहीद किया गया था।  जब फ़तेह मक्का हो गया तो इन लोगों  ने क़त्ल किये जाने के डर से ईमान ले आये थे।  

अगर देखा जाये तो हमको पता चलता है कि इस्लामिक हिस्ट्री में अमीर मुआविया एक बहुत ही कंट्रोवर्सी वाले शख्शियत रहे है।  अगर इनकी हिस्ट्री पढ़ेंगे तो पता चलेगा कि शुरू से ही इनके बारे में इस्लामिक विद्यवान और बड़े बड़े उलेमाओं की अलग अलग राय रही है।  आईये इनके बारे में कुछ जरुरी बाते जानते है।  

नोट :     अगर इस्लाम में जो शख़्स ईमान की हालत में रसूलल्लाह सल्लाहों अलैहि वसल्लम को अपनी ज़िन्दगी में देख लेता है तो उसको सहाबी कहा जाता है, तो इस हिसाब से ये लोगों (अबू सुफ़ियान और अमीर मुआविया) को भी सहाबी कहा जा सकता है, लेकिन हर सहाबी के नाम के आगे रज़िअल्लाह लगाना कोई  जरुरी नहीं है, बहोत सी हदीसों में सहाबी के नाम के आगे रज़िअल्लाह नहीं लिखा है, ये तो दुआए कलिमात है जिनको लगाना हो लगाए और जिनको न लगाना हो न लगाये ।  और जो लोग ये कहते है कि हर सहाबी जन्नती है, वो सिर्फ अपनी तरफ से कहते है, रसूलल्लाह सल्लाहों अलैहि वसल्लम ने अपनी ज़िन्दगी में जिन सहाबी को उनकी ज़िन्दगी में जन्नत की बशारत दी है, सिर्फ वो ही जन्नती है।  और जिनको रसूलल्लाह सल्लाहों अलैहि वसल्लम ने जन्नत की बशारत नहीं दी तो उनको हम कौन होते है उनको जन्नती बताने वाले?  

अमीर मुआविया बिन अबू सुफ़ियान की बहुत से विवाद में जो सबसे ज्यादा प्रसिद्ध विवाद रहा है वो ये है कि इन्होने इस्लाम के चौथे ख़लीफ़ा, यानी ख़ालिफतुन राशिदीन, हज़रत अली रज़ि० से जंग ए सिफ़्फ़ीन  की थी और वो हज़रत अली रज़ि० को ख़लीफ़ा नहीं मानते थे, इस मामले में लगभग सारे ही फ़िरक़ों के बड़े -2 उलेमा हज़रत अली रज़ि० को ही हक़ पर मानते है और अमीर मुआविया को खता पे मानते है।  

बहोत से लोग कहते है कि जब हज़रत इमाम हसन रज़ि० ने अमीर मुआविया से सुलह कर ली थी तो अब हमलोगों को भी उनकी गलतियां नहीं बयान करनी चाहिए।  तो आपको बता दू कि हज़रत इमाम हसन रज़ि० ने अमीर मुआविया से सुलह तो की थी लेकिन कुछ शर्तो के साथ और उन शर्तो में से एक ये भी शर्त थी कि वो अपने बाद अपने बेटे यजीद मलऊन को ख़लीफ़ा नहीं बनाएंगे लेकिन उन्होंने अपनी ज़िन्दगी में ही अपने बेटे यजीद मलऊन की बैत लेनी शुरू कर दी थी, जिससे वो सुलह टूट गई थी।  नीचे लिखी हदीस में उसका हवाला है।  

सही बुखारी हदीस नंबर – 2704, 7109 & 4827,

आईये क़ुरान और सही हदीस की रोशनी में और भी विवादों को जानते है।  

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सबसे पहले एक मुस्लिम शरीफ़ की हदीस पेश करता हू, जिसमें अमीर मुआविया हुक्म करते है, एक-दूसरे का माल नाहक और अपनी जानो को तबाह करने के लिए।   

حَدَّثَنَا زُهَيْرُ بْنُ حَرْبٍ، وَإِسْحَاقُ بْنُ إِبْرَاهِيمَ، قَالَ إِسْحَاقُ أَخْبَرَنَا وَقَالَ، زُهَيْرٌ حَدَّثَنَا جَرِيرٌ، عَنِ الأَعْمَشِ، عَنْ زَيْدِ بْنِ وَهْبٍ، عَنْ عَبْدِ الرَّحْمَنِ بْنِ عَبْدِ رَبِّ الْكَعْبَةِ، قَالَ دَخَلْتُ الْمَسْجِدَ فَإِذَا عَبْدُ اللَّهِ بْنُ عَمْرِو بْنِ الْعَاصِ جَالِسٌ فِي ظِلِّ الْكَعْبَةِ وَالنَّاسُ مُجْتَمِعُونَ عَلَيْهِ فَأَتَيْتُهُمْ فَجَلَسْتُ إِلَيْهِ فَقَالَ كُنَّا مَعَ رَسُولِ اللَّهِ صلى الله عليه وسلم فِي سَفَرٍ فَنَزَلْنَا مَنْزِلاً فَمِنَّا مَنْ يُصْلِحُ خِبَاءَهُ وَمِنَّا مَنْ يَنْتَضِلُ وَمِنَّا مَنْ هُوَ فِي جَشَرِهِ إِذْ نَادَى مُنَادِي رَسُولِ اللَّهِ صلى الله عليه وسلم الصَّلاَةَ جَامِعَةً ‏.‏ فَاجْتَمَعْنَا إِلَى رَسُولِ اللَّهِ صلى الله عليه وسلم فَقَالَ ‏”‏ إِنَّهُ لَمْ يَكُنْ نَبِيٌّ قَبْلِي إِلاَّ كَانَ حَقًّا عَلَيْهِ أَنْ يَدُلَّ أُمَّتَهُ عَلَى خَيْرِ مَا يَعْلَمُهُ لَهُمْ وَيُنْذِرَهُمْ شَرَّ مَا يَعْلَمُهُ لَهُمْ وَإِنَّ أُمَّتَكُمْ هَذِهِ جُعِلَ عَافِيَتُهَا فِي أَوَّلِهَا وَسَيُصِيبُ آخِرَهَا بَلاَءٌ وَأُمُورٌ تُنْكِرُونَهَا وَتَجِيءُ فِتْنَةٌ فَيُرَقِّقُ بَعْضُهَا بَعْضًا وَتَجِيءُ الْفِتْنَةُ فَيَقُولُ الْمُؤْمِنُ هَذِهِ مُهْلِكَتِي ‏.‏ ثُمَّ تَنْكَشِفُ وَتَجِيءُ الْفِتْنَةُ فَيَقُولُ الْمُؤْمِنُ هَذِهِ هَذِهِ ‏.‏ فَمَنْ أَحَبَّ أَنْ يُزَحْزَحَ عَنِ النَّارِ وَيَدْخُلَ الْجَنَّةَ فَلْتَأْتِهِ مَنِيَّتُهُ وَهُوَ يُؤْمِنُ بِاللَّهِ وَالْيَوْمِ الآخِرِ وَلْيَأْتِ إِلَى النَّاسِ الَّذِي يُحِبُّ أَنْ يُؤْتَى إِلَيْهِ وَمَنْ بَايَعَ إِمَامًا فَأَعْطَاهُ صَفْقَةَ يَدِهِ وَثَمَرَةَ قَلْبِهِ فَلْيُطِعْهُ إِنِ اسْتَطَاعَ فَإِنْ جَاءَ آخَرُ يُنَازِعُهُ فَاضْرِبُوا عُنُقَ الآخَرِ ‏”‏ ‏.‏ فَدَنَوْتُ مِنْهُ فَقُلْتُ لَهُ أَنْشُدُكَ اللَّهَ آنْتَ سَمِعْتَ هَذَا مِنْ رَسُولِ اللَّهِ صلى الله عليه وسلم فَأَهْوَى إِلَى أُذُنَيْهِ وَقَلْبِهِ بِيَدَيْهِ وَقَالَ سَمِعَتْهُ أُذُنَاىَ وَوَعَاهُ قَلْبِي ‏.‏ فَقُلْتُ لَهُ هَذَا ابْنُ عَمِّكَ مُعَاوِيَةُ يَأْمُرُنَا أَنْ نَأْكُلَ أَمْوَالَنَا بَيْنَنَا بِالْبَاطِلِ وَنَقْتُلَ أَنْفُسَنَا وَاللَّهُ يَقُولُ ‏{‏ يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا لاَ تَأْكُلُوا أَمْوَالَكُمْ بَيْنَكُمْ بِالْبَاطِلِ إِلاَّ أَنْ تَكُونَ تِجَارَةً عَنْ تَرَاضٍ مِنْكُمْ وَلاَ تَقْتُلُوا أَنْفُسَكُمْ إِنَّ اللَّهَ كَانَ بِكُمْ رَحِيمًا‏}‏ قَالَ فَسَكَتَ سَاعَةً ثُمَّ قَالَ أَطِعْهُ فِي طَاعَةِ اللَّهِ وَاعْصِهِ فِي مَعْصِيَةِ اللَّهِ ‏.‏

It has been narrated on the authority of ‘Abd al-Rahman b. Abd Rabb al-Ka’ba who said: I entered the mosque when ‘Abdullah b. ‘Amr b. al-‘As was sitting in the shade of the Ka’ba and the people had gathered around him. I betook myself to them and sat near him. (Now) Abdullah said: I accompanied the Messenger of Allah (ﷺ) on a journey. We halted at a place. Some of us began to set right their tents, others began to compete with one another in shooting, and others began to graze their beasts, when an announcer of the Messenger of Allah (ﷺ) announced that the people should gather together for prayer, so we gathered around the Messenger of Allah (ﷺ). He said: It was the duty of every Prophet that has gone before me to guide his followers to what he knew was good for them and warn them against what he knew was bad for them; but this Umma of yours has its days of peace and (security) in the beginning of its career, and in the last phase of its existence it will be afflicted with trials and with things disagreeable to you. (In this phase of the Umma), there will be tremendous trials one after the other, each making the previous one dwindle into insignificance. When they would be afflicted with a trial, the believer would say: This is going to bring about my destruction. When at (the trial) is over, they would be afflicted with another trial, and the believer would say: This surely is going to be my end. Whoever wishes to be delivered from the fire and enter the garden should die with faith in Allah and the Last Day and should treat the people as he wishes to be treated by them. He who swears allegiance to a Caliph should give him the piedge of his hand and the sincerity of his heart (i. e. submit to him both outwardly as well as inwardly). He should obey him to the best of his capacity. It another man comes forward (as a claimant to Caliphate), disputing his authority, they (the Muslims) should behead the latter. The narrator says: I came close to him (‘Abdullah b. ‘Amr b. al-‘As) and said to him: Can you say on oath that you heard it from the Messenger of Allah (ﷺ)? He pointed with his hands to his ears and his heart and said: My ears heard it and my mind retained it. I said to him: This cousin of yours, Mu’awiya, orders us to unjustly consume our wealth among ourselves and to kill one another, while Allah says: ” O ye who believe, do not consume your wealth among yourselves unjustly, unless it be trade based on mutual agreement, and do not kill yourselves. Verily, God is Merciful to you” (Quran 4 -29). The narrator says that (hearing this) Abdullah b. ‘Amr b. al-As kept quiet for a while and then said: Obey him in so far as he is obedient to God; and diqobey him in matters involving disobedience to God.

इसे अब्द अल-रहमान बी के अधिकार पर वर्णित किया गया है। अब्द रब्ब अल-काबा ने कहा: मैंने मस्जिद में प्रवेश किया जब ‘अब्दुल्ला बी. ‘अम्र बी. अल-अस काबा की छाया में बैठा था और लोग उसके चारों ओर इकट्ठा हो गए थे। मैं अपने आप को उनके पास ले गया और उनके पास बैठ गया। (अब) अब्दुल्ला ने कहा: मैं अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के साथ एक यात्रा पर गया था। हम एक जगह रुके. हममें से कुछ ने अपने तंबू ठीक करने शुरू कर दिए, कुछ ने शूटिंग में एक-दूसरे के साथ प्रतिस्पर्धा करना शुरू कर दिया, और दूसरों ने अपने जानवरों को चराना शुरू कर दिया, जब अल्लाह के नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के एक उद्घोषक ने घोषणा की कि लोगों को एक साथ इकट्ठा होना चाहिए प्रार्थना, इसलिए हम अल्लाह के दूत (उन पर शांति हो) के आसपास एकत्र हुए। उन्होंने कहा: यह हर पैगंबर का कर्तव्य था जो मुझसे पहले गया था कि वह अपने अनुयायियों को वह मार्गदर्शन दे जो वह जानता था कि उनके लिए अच्छा था और उन्हें चेतावनी दे कि जो वह जानता था कि वह उनके लिए बुरा था; लेकिन आपकी इस उम्मा के करियर की शुरुआत में शांति और (सुरक्षा) के दिन होंगे, और अपने अस्तित्व के आखिरी चरण में यह परीक्षणों और आपके लिए अप्रिय चीजों से पीड़ित होगी। (उम्मा के इस चरण में), एक के बाद एक ज़बरदस्त परीक्षण होंगे, जिनमें से प्रत्येक पिछले को महत्वहीन बना देगा। जब उन पर कोई परीक्षा आयेगी तो मोमिन कहेगाः यह तो मेरा विनाश कर देगा। जब (मुकदमा) समाप्त हो जाएगा, तो वे एक और परीक्षण से पीड़ित होंगे, और आस्तिक कहेंगे: यह निश्चित रूप से मेरा अंत होने वाला है। जो कोई आग से बचकर जन्नत में दाखिल होना चाहे, उसे अल्लाह और आख़िरत के दिन पर ईमान के साथ मरना चाहिए और लोगों के साथ वैसा ही व्यवहार करना चाहिए जैसा वह चाहता है कि वे उनके साथ व्यवहार करें। जो कोई खलीफा के प्रति निष्ठा की शपथ लेता है, उसे उसे अपने हाथ की प्रतिज्ञा और अपने दिल की ईमानदारी देनी चाहिए (अर्थात उसे बाहरी और आंतरिक दोनों तरह से समर्पित होना चाहिए)। उसे अपनी सर्वोत्तम क्षमता से उसका पालन करना चाहिए। यदि कोई अन्य व्यक्ति (खिलाफत के दावेदार के रूप में) आगे आता है, उसके अधिकार पर विवाद करता है, तो उन्हें (मुसलमानों को) उसका सिर काट देना चाहिए। वर्णनकर्ता कहता है: मैं उसके करीब आया (‘अब्दुल्ला बी. ‘अम्र बी. अल-‘अस) और उससे कहा: क्या आप शपथ लेकर कह सकते हैं कि आपने इसे अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) से सुना है? उसने अपने हाथों से अपने कानों और अपने दिल की ओर इशारा किया और कहा: मेरे कानों ने इसे सुना और मेरे दिमाग ने इसे बरकरार रखा। मैंने उससे कहा: आपका यह चचेरा भाई, मुआविया, हमें आदेश देता है कि हम अपने धन को आपस में अन्यायपूर्वक उपभोग करें और एक दूसरे को मार डालें, जबकि अल्लाह कहता है: “हे ईमान वालों, अपने धन को आपस में अन्यायपूर्वक न खाओ, जब तक कि यह न हो आपसी समझौते के आधार पर व्यापार करें, और अपने आप को न मारें, वास्तव में, ईश्वर आपके प्रति दयालु है” (सूरह निशा आयत नंबर 29)। वर्णनकर्ता कहता है कि (यह सुनकर) अब्दुल्ला बी. ‘अम्र बी. अल-अस कुछ देर तक चुप रहे और फिर कहा: जब तक वह (मुआविया) अल्लाह का आज्ञाकारी हो तब तक उसकी आज्ञा मानो; और अल्लाह की अवज्ञा से जुड़े मामलों में उसकी आज्ञा का पालन न करो। 

सही मुस्लिम हदीस नंबर – 4776 / 1844,  सूरह निशा आयत नंबर 29

Sahi Muslim Hadees No. 4776 / 1844 

दूसरी हदीस बुखारी शरीफ से पेश करता हूँ, जिसमे अमीर मुआविया अपने आप को हज़रत उमर रज़ि० से ज्यादा ख़िलाफ़त का हक़दार बता रहे है।  

حَدَّثَنِي إِبْرَاهِيمُ بْنُ مُوسَى، أَخْبَرَنَا هِشَامٌ، عَنْ مَعْمَرٍ، عَنِ الزُّهْرِيِّ، عَنْ سَالِمٍ، عَنِ ابْنِ عُمَرَ، قَالَ وَأَخْبَرَنِي ابْنُ طَاوُسٍ، عَنْ عِكْرِمَةَ بْنِ خَالِدٍ، عَنِ ابْنِ عُمَرَ، قَالَ دَخَلْتُ عَلَى حَفْصَةَ وَنَسْوَاتُهَا تَنْطُفُ، قُلْتُ قَدْ كَانَ مِنْ أَمْرِ النَّاسِ مَا تَرَيْنَ، فَلَمْ يُجْعَلْ لِي مِنَ الأَمْرِ شَىْءٌ‏.‏ فَقَالَتِ الْحَقْ فَإِنَّهُمْ يَنْتَظِرُونَكَ، وَأَخْشَى أَنْ يَكُونَ فِي احْتِبَاسِكَ عَنْهُمْ فُرْقَةٌ‏.‏ فَلَمْ تَدَعْهُ حَتَّى ذَهَبَ، فَلَمَّا تَفَرَّقَ النَّاسُ خَطَبَ مُعَاوِيَةُ قَالَ مَنْ كَانَ يُرِيدُ أَنْ يَتَكَلَّمَ فِي هَذَا الأَمْرِ فَلْيُطْلِعْ لَنَا قَرْنَهُ، فَلَنَحْنُ أَحَقُّ بِهِ مِنْهُ وَمِنْ أَبِيهِ‏.‏ قَالَ حَبِيبُ بْنُ مَسْلَمَةَ فَهَلاَّ أَجَبْتَهُ قَالَ عَبْدُ اللَّهِ فَحَلَلْتُ حُبْوَتِي وَهَمَمْتُ أَنْ أَقُولَ أَحَقُّ بِهَذَا الأَمْرِ مِنْكَ مَنْ قَاتَلَكَ وَأَبَاكَ عَلَى الإِسْلاَمِ‏.‏ فَخَشِيتُ أَنْ أَقُولَ كَلِمَةً تُفَرِّقُ بَيْنَ الْجَمْعِ، وَتَسْفِكُ الدَّمَ، وَيُحْمَلُ عَنِّي غَيْرُ ذَلِكَ، فَذَكَرْتُ مَا أَعَدَّ اللَّهُ فِي الْجِنَانِ‏.‏ قَالَ حَبِيبٌ حُفِظْتَ وَعُصِمْتَ‏.‏ قَالَ مَحْمُودٌ عَنْ عَبْدِ الرَّزَّاقِ وَنَوْسَاتُهَا‏.‏

Narrated `Ikrima bin Khalid: Ibn `Umar said, “I went to Hafsa while water was dribbling from her twined braids. I said, ‘The condition of the people is as you see, and no authority has been given to me.’ Hafsa said, (to me), ‘Go to them, and as they (i.e. the people) are waiting for you, and I am afraid your absence from them will produce division amongst them.’ ” So Hafsa did not leave Ibn `Umar till we went to them. When the people differed. Muawiya addressed the people saying, “‘If anybody wants to say anything in this matter of the Caliphate, he should show up and not conceal himself, for we are more rightful to be a Caliph than he and his father.” On that, Habib bin Masalama said (to Ibn `Umar), “Why don’t you reply to him (i.e. Muawiya)?” `Abdullah bin `Umar said, “I untied my garment that was going round my back and legs while I was sitting and was about to say, ‘He who fought against you and against your father for the sake of Islam, is more rightful to be a Caliph,’ but I was afraid that my statement might produce differences amongst the people and cause bloodshed, and my statement might be interpreted not as I intended. (So I kept quiet) remembering what Allah has prepared in the Gardens of Paradise (for those who are patient and prefer the Hereafter to this worldly life).” Habib said, “You did what kept you safe and secure (i.e. you were wise in doing so).

इकरिमा बिन ख़ालिद से रिवायत है: इब्न उमर ने कहा, “मैं हफ्सा के पास गया जब उसकी मुड़ी हुई चोटियों से पानी टपक रहा था। मैंने कहा, ‘लोगों की हालत वैसी ही है जैसी आप देख रहे हैं, और मुझे कोई अधिकार नहीं दिया गया है।’ हफ्सा ने कहा, (मुझसे), ‘उनके पास जाओ, और वे (अर्थात लोग) तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहे हैं, और मुझे डर है कि उनमें से तुम्हारी अनुपस्थिति उनके बीच विभाजन पैदा कर देगी।’ “इसलिए हफ्सा ने इब्न उमर को तब तक नहीं छोड़ा जब तक हम उनके पास नहीं गए। जब लोगों में मतभेद था. मुआविया ने लोगों को संबोधित करते हुए कहा, “‘अगर कोई खलीफा के इस मामले में कुछ भी कहना चाहता है, तो उसे सामने आना चाहिए और खुद को छिपाना नहीं चाहिए, क्योंकि हम उसके और उसके पिता की तुलना में खलीफा होने के अधिक हकदार हैं।” उस पर, हबीब बिन मसलामा ने (इब्न उमर से) कहा, “आप उसे (यानी मुआविया को) जवाब क्यों नहीं देते?” अब्दुल्ला बिन उमर ने कहा, “जब मैं बैठा था तो मैंने अपना कपड़ा खोल दिया जो मेरी पीठ और पैरों के चारों ओर घूम रहा था और कहने ही वाला था, ‘जो इस्लाम के लिए तुम्हारे और तुम्हारे पिता के विरुद्ध लड़े, वह इस्लाम के लिए अधिक हक़दार है।” ख़लीफ़ा बनो,’ लेकिन मुझे डर था कि मेरे बयान से लोगों के बीच मतभेद पैदा हो सकता है और खून-खराबा हो सकता है, और मेरे बयान का वैसा अर्थ नहीं निकाला जाएगा जैसा मैंने सोचा था (इसलिए मैं चुप रहा) यह याद करते हुए कि अल्लाह ने स्वर्ग के बागों में क्या तैयार किया है (के लिए) जो लोग धैर्यवान हैं और इस सांसारिक जीवन की अपेक्षा आख़िरत को पसन्द करते हैं।” हबीब ने कहा, “तुमने वही किया जो तुम्हें सुरक्षित और संरक्षित रखता था (अर्थात ऐसा करने में तुम बुद्धिमान थे)।

सही बुखारी शरीफ हदीस नंबर – 4108 

Sahih al-Bukhari 4108

तीसरी हदीस भी बुखारी शरीफ से पेश करता हूँ,  जिसमे अमीर मुआविया अपनी ज़िन्दगी में ही अपने बेटे यजीद मलऊन की बैत लेने का हुक्म जारी करते है।  

حَدَّثَنَا مُوسَى بْنُ إِسْمَاعِيلَ، حَدَّثَنَا أَبُو عَوَانَةَ، عَنْ أَبِي بِشْرٍ، عَنْ يُوسُفَ بْنِ مَاهَكَ، قَالَ كَانَ مَرْوَانُ عَلَى الْحِجَازِ اسْتَعْمَلَهُ مُعَاوِيَةُ، فَخَطَبَ فَجَعَلَ يَذْكُرُ يَزِيدَ بْنَ مُعَاوِيَةَ، لِكَىْ يُبَايِعَ لَهُ بَعْدَ أَبِيهِ، فَقَالَ لَهُ عَبْدُ الرَّحْمَنِ بْنُ أَبِي بَكْرٍ شَيْئًا، فَقَالَ خُذُوهُ‏.‏ فَدَخَلَ بَيْتَ عَائِشَةَ فَلَمْ يَقْدِرُوا ‏{‏عَلَيْهِ‏}‏ فَقَالَ مَرْوَانُ إِنَّ هَذَا الَّذِي أَنْزَلَ اللَّهُ فِيهِ ‏{‏وَالَّذِي قَالَ لِوَالِدَيْهِ أُفٍّ لَكُمَا أَتَعِدَانِنِي‏}‏‏.‏ فَقَالَتْ عَائِشَةُ مِنْ وَرَاءِ الْحِجَابِ مَا أَنْزَلَ اللَّهُ فِينَا شَيْئًا مِنَ الْقُرْآنِ إِلاَّ أَنَّ اللَّهَ أَنْزَلَ عُذْرِي‏.‏

Narrated Yusuf bin Mahak: Marwan had been appointed as the governor of Hijaz by Muawiya. He delivered a sermon and mentioned Yazid bin Muawiya so that the people might take the oath of allegiance to him as the successor of his father (Muawiya). Then `Abdur Rahman bin Abu Bakr told him something whereupon Marwan ordered that he be arrested. But `Abdur-Rahman entered `Aisha’s house and they could not arrest him. Marwan said, “It is he (`AbdurRahman) about whom Allah revealed this Verse: — ‘And the one who says to his parents: ‘Fie on you! Do you hold out the promise to me..?'” On that, `Aisha said from behind a screen, “Allah did not reveal anything from the Qur’an about us except what was connected with the declaration of my innocence (of the slander).

यूसुफ़ बिन महक ने रिवायत किया:  मुआविया ने मारवान को हिजाज़ का गवर्नर नियुक्त किया था। उन्होंने एक उपदेश दिया और यज़ीद बिन मुआविया का उल्लेख किया ताकि लोग उसके पिता (मुआविया) के उत्तराधिकारी के रूप में उसके प्रति निष्ठा की शपथ ले सकें। फिर ‘अब्दुर रहमान बिन अबू बक्र ने उसे कुछ बताया जिसके बाद मारवान ने उसे गिरफ्तार करने का आदेश दिया। लेकिन अब्दुर-रहमान आयशा के घर में घुस गया और वे उसे गिरफ्तार नहीं कर सके। मरवान ने कहा, “यह वही (अब्दुर्रहमान) है जिसके बारे में अल्लाह ने यह आयत नाज़िल की:– ‘और वह जो अपने माता-पिता से कहता है: ‘तुम पर धिक्कार है! क्या तुम मुझसे वादा पूरा करते हो..?'” उस पर `आयशा ने परदे के पीछे से कहा, ”अल्लाह ने हमारे बारे में कुरान से कुछ भी प्रकट नहीं किया, सिवाय इसके कि जो मेरी बेगुनाही (बदनामी) की घोषणा से जुड़ा था।

सही बुखारी हदीस नंबर – 4827,  सूरह अहकाफ़ आयत नंबर 17 की तफ़्सीर 

Sahih al-Bukhari 4827

चौथी हदीस जोकि मुस्लिम शरीफ और तिर्मिज़ी शरीफ दोनों से पेश करता हूँ, जिसमें अमीर मुआविया, हज़रत अली रज़ि० पर लानत करने का हुक्म दे रहे है।  

حَدَّثَنَا قُتَيْبَةُ بْنُ سَعِيدٍ، وَمُحَمَّدُ بْنُ عَبَّادٍ، – وَتَقَارَبَا فِي اللَّفْظِ – قَالاَ حَدَّثَنَا حَاتِمٌ، – وَهُوَ ابْنُ إِسْمَاعِيلَ – عَنْ بُكَيْرِ بْنِ مِسْمَارٍ، عَنْ عَامِرِ بْنِ سَعْدِ بْنِ أَبِي وَقَّاصٍ، عَنْ أَبِيهِ، قَالَ أَمَرَ مُعَاوِيَةُ بْنُ أَبِي سُفْيَانَ سَعْدًا فَقَالَ مَا مَنَعَكَ أَنْ تَسُبَّ أَبَا التُّرَابِ فَقَالَ أَمَّا مَا ذَكَرْتُ ثَلاَثًا قَالَهُنَّ لَهُ رَسُولُ اللَّهِ صلى الله عليه وسلم فَلَنْ أَسُبَّهُ لأَنْ تَكُونَ لِي وَاحِدَةٌ مِنْهُنَّ أَحَبُّ إِلَىَّ مِنْ حُمْرِ النَّعَمِ سَمِعْتُ رَسُولَ اللَّهِ صلى الله عليه وسلم يَقُولُ لَهُ خَلَّفَهُ فِي بَعْضِ مَغَازِيهِ فَقَالَ لَهُ عَلِيٌّ يَا رَسُولَ اللَّهِ خَلَّفْتَنِي مَعَ النِّسَاءِ وَالصِّبْيَانِ فَقَالَ لَهُ رَسُولُ اللَّهِ صلى الله عليه وسلم ‏”‏ أَمَا تَرْضَى أَنْ تَكُونَ مِنِّي بِمَنْزِلَةِ هَارُونَ مِنْ مُوسَى إِلاَّ أَنَّهُ لاَ نُبُوَّةَ بَعْدِي ‏”‏ ‏.‏ وَسَمِعْتُهُ يَقُولُ يَوْمَ خَيْبَرَ ‏”‏ لأُعْطِيَنَّ الرَّايَةَ رَجُلاً يُحِبُّ اللَّهَ وَرَسُولَهُ وَيُحِبُّهُ اللَّهُ وَرَسُولُهُ ‏”‏ ‏.‏ قَالَ فَتَطَاوَلْنَا لَهَا فَقَالَ ‏”‏ ادْعُوا لِي عَلِيًّا ‏”‏ ‏.‏ فَأُتِيَ بِهِ أَرْمَدَ فَبَصَقَ فِي عَيْنِهِ وَدَفَعَ الرَّايَةَ إِلَيْهِ فَفَتَحَ اللَّهُ عَلَيْهِ وَلَمَّا نَزَلَتْ هَذِهِ الآيَةُ ‏{‏ فَقُلْ تَعَالَوْا نَدْعُ أَبْنَاءَنَا وَأَبْنَاءَكُمْ‏}‏ دَعَا رَسُولُ اللَّهِ صلى الله عليه وسلم عَلِيًّا وَفَاطِمَةَ وَحَسَنًا وَحُسَيْنًا فَقَالَ ‏”‏ اللَّهُمَّ هَؤُلاَءِ أَهْلِي ‏”‏ ‏.‏

Amir b. Sa’d b. Abi Waqqas reported on the authority of his father that Muawiya b. Abi Sufyan appointed Sa’d as the Governor and said: What prevents you from rebuking Abu Turab (Hadrat ‘Ali), whereupon be said: It is because of three things which I remember Allah’s Messenger (ﷺ) having said about him that I would not rebuke him and even if I find one of those three things for me, it would be more dear to me than the red camels. I heard Allah’s Messenger (ﷺ) say about ‘Ali as he left him behind in one of his campaigns (that was Tabuk). ‘Ali said to him: Allah’s Messenger, you leave me behind along with women and children. Thereupon Allah’s Messenger (ﷺ) said to him: Aren’t you satisfied with being unto me what Aaron was unto Moses but with this exception that there is no prophethood after me. And I (also) heard him say on the Day of Khaibar: I would certainly give this standard to a person who loves Allah and his Messenger, and Allah and his Messenger love him too. He (the narrator) said: We had been anxiously waiting for it, when he (the Holy Prophet) said: Call ‘Ali. He was called and his eyes were inflamed. He applied saliva to his eyes and handed over the standard to him, and Allah gave him victory. (The third occasion is this) when the (following Quran: 3-61) verse was revealed: “Let us summon our children and your children.” Allah’s Messenger (ﷺ) called ‘Ali, Fatima, Hasan and Husain and said: O Allah, they are my family.

आमिर बी. साद बी. अबी वक्कास ने अपने पिता के अधिकार पर रिपोर्ट दी कि मुआविया बी. अबी सुफ़ियान ने साद को गवर्नर नियुक्त किया और कहा: आपको अबू तुरब (हज़रत अली) को लानत या गाली देने से कौन रोकता है, तो उन्होंने कहा जाए: यह तीन चीजों के कारण है जो मुझे याद है कि अल्लाह के दूत (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने उसके बारे में कहा था कि मैं उसे न डाँटूँगा और यदि उन तीन वस्तुओं में से एक भी मुझे मिल जाए, तो वह मुझे लाल ऊँटों से भी अधिक प्रिय होगी। मैंने अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को ‘अली’ के बारे में यह कहते हुए सुना क्योंकि उन्होंने अपने एक अभियान (वह तबूक था) में उन्हें पीछे छोड़ दिया था। ‘अली ने उनसे कहा: अल्लाह के दूत, आप मुझे महिलाओं और बच्चों सहित छोड़ दें। इस पर अल्लाह के दूत (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने उससे कहा: क्या तुम मेरे लिए वही बन कर संतुष्ट नहीं हो जो हारून मूसा के लिए था, लेकिन इस अपवाद के साथ कि मेरे बाद कोई पैग़म्बरी नहीं है। और मैंने खैबर के दिन उसे यह कहते हुए भी सुना: मैं निश्चित रूप से उस व्यक्ति को यह मानक दूंगा जो अल्लाह और उसके रसूल से प्यार करता है, और अल्लाह और उसके रसूल भी उससे प्यार करते हैं। उन्होंने (कथावाचक) कहा: हम उत्सुकता से इसका इंतजार कर रहे थे, जब उन्होंने (पवित्र पैगंबर) कहा: अली को बुलाओ। उन्हें बुलाया गया और उनकी आंखें सूज गईं. उसने अपनी आँखों में लार लगाई और उसके हाथ में राज़ थमा दिया और ख़ुदा ने उसे जीत दिला दी। (तीसरा अवसर यह है) जब (निम्नलिखित क़ुरआन : 3 -61 ) आयत नाज़िल हुई: “आओ हम अपने बच्चों और अपने बच्चों को बुलाएँ।” अल्लाह के दूत (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने अली, फातिमा, हसन और हुसैन को बुलाया और कहा: हे अल्लाह, वे मेरे परिवार हैं।

सही मुस्लिम हदीस नंबर– 6220/2404 & 6229/2409, तिर्मिज़ी हदीस नंबर – 3724, सूरह इमरान आयत नं0  61 

Sahih Muslim 2404d, Tirmizi – 3724, Surah Imran Ayat No. 61 

और अब सबसे प्रमुख पांचवीं हदीस जोकि बुखारी शरीफ और मुस्लिम शरीफ दोनों से पेश करता हूँ, जिसमें  रसूलअल्लाह सल्लाहों अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया कि हज़रत अम्मार रज़ि० को एक बाग़ी जमात शहीद करेगी।   हज़रत अम्मार रज़ि० को मुआविया के गिरोह ने शहीद किया था।   

حَدَّثَنَا إِبْرَاهِيمُ بْنُ مُوسَى، أَخْبَرَنَا عَبْدُ الْوَهَّابِ، حَدَّثَنَا خَالِدٌ، عَنْ عِكْرِمَةَ، أَنَّ ابْنَ عَبَّاسٍ، قَالَ لَهُ وَلِعَلِيِّ بْنِ عَبْدِ اللَّهِ ائْتِيَا أَبَا سَعِيدٍ فَاسْمَعَا مِنْ حَدِيثِهِ‏.‏ فَأَتَيْنَاهُ وَهُوَ وَأَخُوهُ فِي حَائِطٍ لَهُمَا يَسْقِيَانِهِ، فَلَمَّا رَآنَا جَاءَ فَاحْتَبَى وَجَلَسَ فَقَالَ كُنَّا نَنْقُلُ لَبِنَ الْمَسْجِدِ لَبِنَةً لَبِنَةً، وَكَانَ عَمَّارٌ يَنْقُلُ لَبِنَتَيْنِ لَبِنَتَيْنِ، فَمَرَّ بِهِ النَّبِيُّ صلى الله عليه وسلم وَمَسَحَ عَنْ رَأْسِهِ الْغُبَارَ وَقَالَ ‏ “‏ وَيْحَ عَمَّارٍ، تَقْتُلُهُ الْفِئَةُ الْبَاغِيَةُ، عَمَّارٌ يَدْعُوهُمْ إِلَى اللَّهِ وَيَدْعُونَهُ إِلَى النَّارِ ‏”‏‏.‏

Narrated `Ikrima: that Ibn `Abbas told him and `Ali bin `Abdullah to go to Abu Sa`id and listen to some of his narrations; So they both went (and saw) Abu Sa`id and his brother irrigating a garden belonging to them. When he saw them, he came up to them and sat down with his legs drawn up and wrapped in his garment and said, “(During the construction of the mosque of the Prophet) we carried the adobe of the mosque, one brick at a time while `Ammar used to carry two at a time. The Prophet (ﷺ) passed by `Ammar and removed the dust off his head and said, “May Allah be merciful to `Ammar. He will be killed by a rebellious aggressive group. `Ammar will invite them to (obey) Allah and they will invite him to the (Hell) fire.”

इकरीमा ने रिवायत किया: कि इब्न अब्बास ने उसे और अली बिन अब्दुल्ला को अबू सईद के पास जाकर उसकी कुछ कहानियाँ सुनने को कहा; इसलिए वे दोनों गए (और देखा) कि अबू सईद और उसका भाई उनके एक बगीचे की सिंचाई कर रहे थे। जब उसने उन्हें देखा, तो वह उनके पास आया और अपने पैरों को ऊपर उठाकर और अपने कपड़े लपेटकर बैठ गया और कहा, “(पैगंबर की मस्जिद के निर्माण के दौरान) हम मस्जिद की ईंटें एक बार में एक ईंट उठाते थे, जबकि अम्मार एक बार में दो ईंटें उठाते थे। पैगंबर (ﷺ) अम्मार के पास से गुज़रे और उसके सिर से धूल हटाई और कहा, “अल्लाह अम्मार पर दया करे। वह एक विद्रोही आक्रामक समूह द्वारा मारा जाएगा। अम्मार उन्हें अल्लाह की आज्ञा मानने के लिए आमंत्रित करेगा और वे उसे (नरक) की आग में आमंत्रित करेंगे।”

नोटहज़रत अम्मार रज़ि० को मुआविया के गिरोह ने शहीद किया था।  

सही बुखारी हदीस नंबर – 2812, 447,    सही मुस्लिम हदीस नंबर – 7320 – 7324 / 2915 to 2916

Sahih al-Bukhari 2812,     Sahi Muslim Hadees No. 7320 to 7324 / 2915 to 2916

निष्कर्ष : 

ऊपर लिखी गयी क़ुरान और सही हदीस ये साफ़ समझ में आता है कि अमीर मुआविया बहुत से मामलों में वो खता पर थे इसलिये बड़े बड़े सुन्नी उलेमाओं ने उनको खता पर माना और उनका मामला अल्लाह पर छोड़ दिया और न कभी उनके फ़ज़ाइल व मनाक़िब बयान किया गया, और न ही कभी उनके नारे लगाए।  लेकिन आज कुछ नास्बियत सोच के लोगों ने उनका फ़ज़ायल बयान करने लगे है और कुछ तो 22 रज़ब को उनका उर्स भी माना रहे है।  रसूलल्लाह सल्लाहों अलैहि वसल्लम की एक हदीस है, “जिसने अली को गाली दी, गोयाकि  रसूलल्लाह सल्लाहों अलैहि वसल्लम को गाली दी। ” (मिश्क़ात हदीस नंबर 6101), रसूलल्लाह सल्लाहों अलैहि वसल्लम की एक और हदीस है, “अली क़ुरान के साथ है और क़ुरान अली के साथ है । ” (मुस्ताबरक अल हाकिम हदीस नंबर 4628). इनसब से एक बात तो पता चलती है की हम अमीर मुआविया को भी सहाबी तो मान सकते है, लेकिन उनकी तारीफ़ या फ़ज़ाईल व मनाक़िब बयान नहीं कर सकते है।  हम इनके लान-तान के पक्ष में भी नहीं है। 

Muawiya ki Haqiqat – explained by Engineer Muhammad Ali Mirza: https://www.youtube.com/watch?v=4ddhvVT8io4

1 thought on “अमीर मुआवियां की हक़ीक़त – क़ुरान और सही हदीस की रोशनी में – Muawiya kon tha ?”

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