
अस सलामों अलैकुम,
दोस्तों अगर हम इस्लामी दौर के प्रमुख शख़्शियत के बारे में बात करे तो, बेशक़ सबसे पहले हमारे आक़ा और अल्लाह के रसूल, हज़रत मुहम्मद सल्लाहों अलैहि वसल्लम ही है, उनको इस्लाम के दो प्रमुख फ़िरक़े शिया और सुन्नी दोनों ही मानते है। लेकिन अगर पैग़म्बर मुहम्मद स० के बाद कौन सबसे अफ़ज़ल है, ये अगर किसी शिया के पूछा जाये तो वो हज़रत इमाम अली अलैहिस सलाम (imam ali as) को सबसे अफ़ज़ल बताएँगे। लेकिन अगर सुन्नी से पूछा जाये तो ज्यादातर सुन्नी खुलफ़ा ए राशिदीन में से सबसे पहले ख़लीफ़ा हज़रत अबू बकर सिद्दीक रज़ि० का नाम लेंगे। हालांकि सुन्नी भी हज़रत अली रज़ि० को चौथे ख़लीफ़ा मानते है। हज़रत अली रज़ि० जो कि न सिर्फ दामाद ए रसूल (स०) थे बल्कि वो रसूलल्लाह (स०) के चचाज़ात भाई भी थे यानी की वो अहलेबैत में से थे। हज़रत इमाम अली अलैहिस सलाम (imam ali as)
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आईए अब जानते है कि अल्लाह और उसके रसूल स० ने क़ुरान और हदीस के जरिये जिस शख़्शियत को पैग़म्बर मुहम्मद सल्लाहों अलैहि वसल्लम के बाद सबसे अफ़ज़ल बताया है वो कौन है ?
The Significance of Imam Ali as in Islamic History
सबसे पहले हम क़ुरआन शरीफ़ की सूरह बक़रह की आयत नंबर 253 पढ़ते है :
Surah Baqarah (2:253)
۞ تِلْكَ ٱلرُّسُلُ فَضَّلْنَا بَعْضَهُمْ عَلَىٰ بَعْضٍۢ ۘ مِّنْهُم مَّن كَلَّمَ ٱللَّهُ ۖ وَرَفَعَ بَعْضَهُمْ دَرَجَـٰتٍۢ ۚ وَءَاتَيْنَا عِيسَى ٱبْنَ مَرْيَمَ ٱلْبَيِّنَـٰتِ وَأَيَّدْنَـٰهُ بِرُوحِ ٱلْقُدُسِ ۗ وَلَوْ شَآءَ ٱللَّهُ مَا ٱقْتَتَلَ ٱلَّذِينَ مِنۢ بَعْدِهِم مِّنۢ بَعْدِ مَا جَآءَتْهُمُ ٱلْبَيِّنَـٰتُ وَلَـٰكِنِ ٱخْتَلَفُوا۟ فَمِنْهُم مَّنْ ءَامَنَ وَمِنْهُم مَّن كَفَرَ ۚ وَلَوْ شَآءَ ٱللَّهُ مَا ٱقْتَتَلُوا۟ وَلَـٰكِنَّ ٱللَّهَ يَفْعَلُ مَا يُرِيدُ ٢٥٣
We have chosen some of those messengers above others. Allah spoke directly to some, and raised some high in rank. To Jesus, son of Mary, We gave clear proofs and supported him with the holy spirit. If Allah had willed, succeeding generations would not have fought ˹among themselves˺ after receiving the clear proofs. But they differed—some believed while others disbelieved. Yet if Allah had willed, they would not have fought one another. But Allah does what He wills.
“ये रसूल हैं, हमने इनमें से कुछ को कुछ पर श्रेष्ठता प्रदान की। इनमें से कुछ वे हैं जिनसे अल्लाह ने बात की, और उनमें से कुछ के उसने दर्जे ऊँचे किए। तथा हमने मरयम के पुत्र ईसा को खुली निशानियाँ दीं और उसे रूह़ुल-क़ुदुस द्वारा शक्ति प्रदान की। और यदि अल्लाह चाहता, तो उनके बाद आने वाले लोग उनके पास खुली निशानियाँ आ जाने के पश्चात आपस में न लड़ते। परंतु उन्होंने मतभेद किया, तो उनमें से कोई तो वह था जो ईमान लाया और उनमें से कोई वह था जिसने कुफ़्र किया। और यदि अल्लाह चाहता, तो वे आपस में न लड़ते, लेकिन अल्लाह जो चाहता है, करता है।”
अब इस आयत के शुरू में अल्लाह पाक ने फ़रमाया कि जो पैग़म्बर दुनिया में भेजे है उनमे से कुछ को कुछ पर फ़ज़ीलत दी है। इस आयत से ये पता चलता है कि जिसकी सबसे ज्यादा फ़ज़ीलत होगी वो ही सबसे अफ़ज़ल होगा।
ऊपर लिखी सूरेह बक़रह की आयात नंबर 253 से ये साफ़ हो जाता है कि जिसकी सबसे ज्यादा फ़ज़ीलत होगी अल्लाह के नज़दीज़ हो ही सबसे अफ़ज़ल होगा ।
अब हम जानेंगे कि इमाम अली की फ़ज़ीलत जोकि खुद रसूल ए खुदा सल्लाहों अलैहि वसल्लम ने बयान किया है।
The virtues of Imam Ali as described by the Prophet Muhammad PBUH himself.
- रसूलल्लाह (सल्लाहों ताला अलैहे वसल्लम) ने फ़रमाया, “अली तुम्हारी मेरे साथ वही मन्ज़िलत है जो सय्यिदना हारुन (अलैहिस सलाम) को सय्यिदना मूसा (अलैहिस सलाम) से थी मगर यह कि मेरे बाद कोई नबी नहीं है”. यानी अगर नबी सल्लाहों अलैहि वसल्लम के बाद कोई नबी होता तो वो हज़रत अली होते। (सही बुखारी : हदीस न० 3706, सहीह मुस्लिम हदीस न० 6217, 6221 /2404)
- “जिसका मैं मौला उसका अली मौला” ( जामे तिर्मिज़ी हदीस न० 3713, मुस्तब्रक अल हाकिम हदीस 4576, मिश्कात : हदीस न० 6013 )
- “अली से मुहब्बत नहीं रखेगा मगर मोमिन, अली से बुग्ज़ नहीं रखेगा मगर मुनाफ़ेक़ीन”। (सही मुस्लिम हदीस न० 240 / 78)
- “आप (सल्ल०) सैयदना अली (रज़ि०) के पास गए, वो लेटे हुए थे और चादर उनके पहलू से अलग हो गई थी और (उन के बदन से) मिट्टी लग गई थी, तो रसूलुल्लाह (सल्ल०) ने वो मिट्टी पोंछना शुरू किया और फ़रमाने लगे कि ऐ अबू-तुराब ! उठ। ऐ अबू-तुराब ! उठ।” सहीह मुस्लिम हदीस न० 6229 /2409 )
- “रसूल अल्लाह (सल्ल०) ने फ़रमाया “तुम्हारे बीच एक शख्श है जो कुरान की व्याख्या पर उसी तरह लड़ेगा जैसे मैंने उसके अवतरण पर लड़ाई लड़ी थी, और वो अली है। ” (मुस्तब्रक अल हाकिम हदीस 4621)
- अब्दुल्लाह बिन अब्बास (रजि अल्लाहो अन्हो) कहते है “पहले पहल जिसने नमाज़ पढ़ी वो हज़रत अली (रजि अल्लाहो अन्हो) है। ( जामे तिर्मिज़ी हदीस न० 3734)
- सबसे पहले जिसने इस्लाम क़बूल किया वो हज़रत अली (रजि अल्लाहो अन्हो) है। (जामे तिर्मिज़ी हदीस न० 3735 )
- रसूलल्लाह (सल्लाहों ताला अलैहे वसल्लम) ने फ़रमाया, “अली मुझसे है और मैं अली से हू। (बुखारी – 4251, जामे तिर्मिज़ी हदीस न० 3719, 3716 और इब्ने माज़ा हदीस न० 119)
- रसूलल्लाह (सल्लाहों ताला अलैहे वसल्लम) ने फ़रमाया, “अली सिद्दीक ए अकबर है” । ( इब्ने माज़ा हदीस न० 120)
- रसूलल्लाह (सल्लाहों ताला अलैहे वसल्लम) ने फ़रमाया, “जो अली का दोस्त, वो रसूलल्लाह (सल्लाहों ताला अलैहे वसल्लम) का दोस्त” । (इब्ने माज़ा हदीस न० 121)
- रसूलल्लाह (सल्लाहों ताला अलैहे वसल्लम) ने फ़रमाया, “अली क़ुरान के साथ है और क़ुरान अली के साथ है”। (मुस्तब्रक अल हाकिम हदीस 4628)
- रसूलल्लाह (सल्लाहों ताला अलैहे वसल्लम) ने फ़रमाया, “जिसने अली को गाली दी गोया उसने मुझ गाली दी” । (मिश्क़ात – 6101, मुसनद अहमद – 27284)
- रसूलल्लाह (सल्लाहों ताला अलैहे वसल्लम) ने फ़रमाया, “मैं इल्म का शहर हू और अली उसका दरवाज़ा है” । (जामे तिर्मिज़ी हदीस न० 3723)
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ऊपर दी हुई हदीसो में इमाम अली की फ़ज़ीलत रसूल अल्लाह – सल्लाहों अलैहि वसल्लम ने बयान किया है। वैसे तो इमाम अली अलैहिस सलाम की बहुत सारी खुशुशियत है, लेकिन यहापर हम मुख़्तलिफ़ शोबों में हज़रत अली की 6 अहम्फ़ ख़ुसूसियत को जानेंगे:
6 Important Specialties of Imam Ali as:
इमाम अली की 6 अहम् खुशुशियात ये है –
1. बहादुरी –
जितनी भी जंगे रसूल अल्लाह – सल्लाहों अलैहि वसल्लम की क़यादत में हुई है चाहे वो जंग ए बदर, जंग ए उहद, जंग ए ख़ंदक़ या फिर जंग ए ख़ैबर हो, ये सारी जंगो हज़रत अली की बहादुरी और हिम्मत की वज़ह से जीती गयी है। हज़रत अली को शेरे ख़ुदा यानि खुदा का शेर भी कहा जाता है।
2. शखावत –
अगर शखावत की बात की जाये तो हज़रत अली की मिसाल किसी से नहीं मिलती, जोकि खुद भूखे रहकर अगर कोई फरयादी आता तो उसको अपना खाना दे देते और खुद भूखे रहते।
3. इल्म व हिक्मत –
इमाम अली के इल्म व हिक्मत के बारे में तो क्या कहना, रसूल अल्लाह – सल्लाहों अलैहि वसल्लम ने खुद फ़रमाया, “मैं इल्म का शहर हू और अली उसका दरवाज़ा” . चाहें वो दीनी इल्म हो या दुनयावी इल्म हो, इमाम अली हर तरह का इल्म रखते थे और लोगों से कहते थे जबतक में तुम्हारे दरमियान हु जो चाहो मुझसे पूछ लो, मैं वो भी इल्म रखता हु जो तुमको दिखता है और वो भी इल्म रख़ता हु जो तुमको नहीं दिखता” . यहाँ तक कि खुलफ़ाए राशिदीन भी अपनी-2 ख़िलाफ़त के दौरान अगर कोई मसला फसता था तो वो हज़रत अली से मशवरा लिया करते थे।
4. अदल व इंसाफ –
हज़रत अली का हर फ़ैसला इंसाफ़ पर ही होता था, उनके पास जो भी केस आया उसको उन्होंने इंसाफ के तराज़ू पे उसका हमेशा सही इंसाफ़ किया।
5. ईमानदारी व सादगी –
हज़रत अली की ईमानदारी को तो उनके दुश्मन भी पसंद करते थे, उनकी ज़िन्दगी का एक भी किस्सा ऐसा नहीं मिलता जहां उनकी ईमानदारी पे किसी ने कभी कोई ऊँगली उठाई हो। उनकी ज़िन्दगी बहोत ही सादगी भरी थी और वो इतने बड़े ख़लीफ़ा होने की बाउजूद सूफ़ी और फ़क़ीरों वाली ज़िन्दगी गुजारते थे।
6. तौहीद (एक खुदा / अल्लाह ) पर यक़ीन –
हज़रत अली एक ख़ुदा या अल्लाह पर टूट के विश्वास करने वाले थे उन्होंने अपनी सारी ज़िन्दगी में एक अल्लाह के सिवा किसी और के आगे कभी अपना सर नहीं झुकाया। वो मर्दो में सबसे पहले अल्लाह और उसके रसूल (स०) पर ईमान लाये थे।
हज़रत इमाम अली अलैहिस सलाम सबसे पहले और तमाम वालियों में सबसे बड़े वली है। विलायत इमाम अली से ही शुरू होती है ।
Imam Ali (AS) is the first and the greatest of all the Walis. Wilayat starts from Imam Ali.

ग़दीर ए ख़ुम के मौके पे रसूलल्लाह – सल्लाहों अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया था, “मनकुन्तो मौला फ़हाज़ा अली उन मौला” और “अली उन वली उल्लाह” यानी जिसका मैं मौला उसका अली मौला है और जिसका मैं वली उसका अली वली है” . इस फ़रमान के बात ये बात साफ़ हो जाती है कि पैग़म्बर मुहम्मद सल्लाहों अलैहि वसल्लम के बाद नबुवत तो खत्म हो जाती है लेकिन विलायत शुरू हो जाती है और विलायत के सबसे पहले वली और तमाम वालियों में सबसे बड़े वली इमाम अली अलैहिस सलाम ही है। आजतक और क़यामत तक जितने भी वली होंगे, उनसब वालियो के वली इमाम अली अलैहिस सलाम है। और वो वली हो ही नहीं सकता जो मौला ए कायनात, इमाम अली अलैहिस सलाम को अपना वली न माने। इमाम अली अलैहिस सलाम अपनी सारी ज़िन्दगी बहोत ही सादगी सूफ़ी, फ़क़ीरों वाली ज़िन्दगी बिताई है, उन जैसा किसी सूफ़ी की आजतक कोई मिसाल नहीं है । विलायत इमाम अली से ही शुरू होती है ।
इमाम अली सबसे बड़े सूफी है : https://mahmoodkhan.in/about-sufism-in-simple-words/
इमाम अली और बाक़ी सहाबा में फ़र्क़ –
इमाम अली को छोड़कर जितने भी सहाबा हुए है चाहें वो हज़रत अबू बक्र रज़ि० हो या हज़रत उमर रज़ि० या फिर हज़रत उस्मान रज़ि० हो, सब के सब कभी न कभी मुशरिक (Polytheist ) रहे है और वो अल्लाह के सिवा दूसरे खुदा की बुतपरस्ती करते थे । लेकिन हज़रत अली जब 7 साल के नाबालिग उम्र के थे तभी ईमान ले आये थे और अल्लाह के सिवा उन्होंने किसी और के सामने कभी भी अपना सिर नहीं झुकाया है।
निष्कर्ष –
ऊपर दी गयी क़ुरानिक आयत और हदीसें नबवी से ये साफ़ पता चलता है कि पैग़म्बर मुहम्मद सल्लाहों अलैहि वसल्लम के बाद, जो सबसे अफ़ज़ल है वो सिर्फ इमाम अली अलैहिस सलाम ही है। हम बाक़ी सहाबा ख़ासकर खुलफ़ाए राशिदीन की बहोत ऐहतराम करते है, लेकिन कुरान और हदीस की रोशनी में, पैग़म्बर मुहम्मद सल्लाहों अलैहि वसल्लम के बाद सिर्फ अमीरुल मुमेनीन, हज़रत इमाम अली अलैहिस सलाम ही सबसे अफ़ज़ल है। और जिन्होंने भी मौला अली – करम अल्लाहो वजाहुल करीम से दुश्मनी रखी, वो मुनाफ़िक़ थे, वो सहाबा नहीं हो सकते। जैसे रसूलल्लाह – सल्लाहों अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया, “जो अली का दुश्मन वो मेरा दुश्मन है”.
हुज़ूर सल्लाहो अलैहि वसल्लम के बाद कोई मौला अली से अफ़ज़ल नहीं है – अल्लामा यासीन क़ादरी का बयान : https://www.youtube.com/watch?v=ipapA5MtgOk
Imam Ali as is the most Superior person after Prophet Muhammad Peace be upon him . detailed Blog in English : https://mahmoodkhan.in/imam-ali-as-is-the-most-virtuous-person-after-prophet-muhammad-pbuh-in-the-light-of-quran-and-hadith/
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