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क्या पेशेवर भिखारी को भीख देना चाहिए ? – Professional Beggars in India –

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दोस्तों, क्या आपके मन में भी यही सवाल आता है तो आज जानने की कोशिस करेंगे कि पेशेवर भिखारी को भीख देनी चाहिये या नहीं।  

तो इसका जवाब है न, पेशेवर भिखारी को कभी भी भीख नहीं देना चाहिए।  क्योंकि हर जगह हम भिखारियों को देखते हैं चाहे वह दुकान हो, पार्क हो, मस्जिद हो, मंदिर हो, आदि। वे पेशेवर (पेशेवर भिखारी) होते हैं और आसानी से रोजाना 500-1000 रुपये कमा लेते हैं। ज़्यादातर पेशेवर भिखारी बुरे कामों में लिप्त होते हैं और उनका आपराधिक इतिहास होता है। कभी-कभी हम देख सकते हैं कि वे अपने साथ छोटे बच्चों को रखते हैं, लेकिन ज़्यादातर ये बच्चे उनके अपने नहीं होते, वे उन्हें अगवा कर लेते हैं और नींद की दवा देकर सहानुभूति के लिए इन बच्चों का इस्तेमाल करते हैं। जबकि असली और सच्चे लोग अपनी शर्म और गरिमा के कारण भीख नहीं मांगते। उनके पास चाय, पान की अपनी छोटी सी दुकान होती है या वे फल/सब्जी बेचते हैं और कड़ी मेहनत के बाद वे रोजाना 100-200 रुपये कमा लेते हैं।

इकोनॉमिक टाइम्स अख़बार के अनुसार,

भारत में 2011 की जनगणना में पूरे भारत में 3.7 लाख भिखारी पाए गए। बॉम्बे प्रिवेंशन ऑफ़ बेगिंग एक्ट 1959, जिसका पूरे भारत में पालन किया जाता है, भीख माँगने को अपराध मानता है और इसके लिए 10 साल तक की सज़ा का प्रावधान करता है।

हालाँकि, बहुत से लोग रमज़ान के आसपास भारत के समृद्ध भागों जैसे नई दिल्ली, मुंबई, पुणे, बेंगलुरु और हैदराबाद में पलायन करते हैं। सर्वेक्षण और आँकड़े मिलना मुश्किल है, लेकिन कार्यकर्ताओं और सामुदायिक नेताओं का कहना है कि इस समय मस्जिदों और मुख्य रूप से मुस्लिम आबादी वाले क्षेत्रों के आस-पास बेसहारा लोगों की संख्या में स्पष्ट रूप से वृद्धि होती है। दिवाली, बैसाखी और नए साल की पूर्व संध्या जैसे अन्य त्योहारों के दौरान भी ऐसा ही रुझान देखा जाता है। धार्मिक संबद्धता इसमें आड़े नहीं आती – न तो देने वालों के लिए, न ही चाहने वालों के लिए।

अधिक जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें:Begging during festivals:

मुस्लिम समाज में भिखारी अधिक क्यों हैं?

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चूंकि भिखारी हर जगह देखे जाते हैं, लेकिन मुस्लिम समाज में हमें भिखारी अधिक मिलते हैं, क्योंकि इस्लाम में प्रत्येक मुसलमान जिसके पास लगभग 7.5 तोला सोना या उसका मूल्य है, उसे अपनी वार्षिक बचत का लगभग 2.5% ज़कात (दान) देना होता है और ज़कात फ़र्ज़ (अनिवार्य) है।  ज्यादातर मुसलमान सही और जरूरतमंद लोगों को ढूंढ़ने के बजाये, उनके घर पे या मस्जिद में जो भिखारी मिल जाता है उसको भीख देना आसान समझते है।  यही कारण है कि मुस्लिम क्षेत्रों में भिखारी आसानी से देखे जा सकते हैं।

निष्कर्ष: 

हमें निश्चित रूप से इन पेशेवर भिखारियों (मुस्लिम या गैर-मुस्लिम) का बहिष्कार करना चाहिए और वास्तविक और सच्चे व्यक्ति की प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से मदद करने का प्रयास करना चाहिए ताकि वास्तविक गरीब व्यक्ति का उत्थान हो सके।

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