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उर्दू और भारतीय मुसलमान /

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 क्या उर्दू भाषा भारतीय मुसलमानों पर एक बोझ है

Kya Urdu language Indian Muslims par ek bhojh hai ?

urdu,

दोस्तों भले ये सुनने में अज़ीब लगता हो लेकिन अगर गौर करे तो उर्दू से मुसलमानों का फायदा कम और नुकसान ज्यादा हुआ है, इसके बारे में बाद में बात करेंगे पहले ये कुछ आंकड़े देखते है।  

    १. ये नीचे WIKIPEDIA website के आकड़े है जो बताते है कि उर्दू भाषा जानने वालो की संख्या में लगातार गिरावट हो रही है. 

Following is ranking data of Urdu language for decades of 1971, 1981, 1991 & 2001:[8]

Urdu: its rank and percentage to total population
19711981199120012011
Rank%Rank%Rank%Rank%Rank%
65.2255.2565.18**65.0174.19

“**” Census was not conducted in the former state of Jammu and Kashmir

Reference https://en.wikipedia.org/wiki/States_of_India_by_Urdu_speakers

२ . ये अब नीचे scroll website के आकड़े है जो भी ये बता रहे है कि उर्दू भाषा जानने वालो की संख्या में लगातार गिरावट हो रही है. 

Urdu numbers falling

Only two scheduled languages have seen a fall in absolute numbers, Urdu and Konkani. There are 5,07,72,631 Urdu speakers in India, a fall of about 1.5% since 2001.

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“Urdu speakers are spread across India but the language’s strongest presence is in the modern-day Hindi belt: the two largest Urdu-speaking states are Uttar Pradesh and Bihar. However, it is precisely here that the fall in Urdu numbers has been significant”.

urdu

“Since Urdu in modern India is associated only with Muslims, this fall is unusual given that the Muslim population in Uttar Pradesh and Bihar has grown between 2001 and 2011. What this might, therefore, mean is that a new generation of Muslims is turning to Hindi since Urdu education has nearly ceased to exist in much of North India”.

Reference : https://scroll.in/article/884754/surging-hindi-shrinking-south-indian-languages-nine-charts-that-explain-the-2011-language-census

३ . ये अब नीचे the wire website के आकड़े है जो कि ये बता रहे है कि मुसलमानों में भी उर्दू भाषा जानने वालो की संख्या बहुत ही काम है.  

“Even on this account, Urdu is declining in the north. UP has 3.85 crore Muslims, but just 1.08 crore Urdu speakers were recorded in the state. If it is believed that only Muslims register Urdu as their mother tongue, then just 28% Muslims in UP recorded Urdu as their primary language”.

Reference : https://thewire.in/culture/urdu-census-language-2011-north-india

सबसे पहले हमलोग थोड़ा उर्दू भाषा के बारे में जानकारी ले लेते है। 

उर्दू भाषा कई भाषाओं से सम्मेलित होकर उत्पन्न हुई है, जिनमे हिंदी, संस्कृत, अरबी फ़ारसी मुख्य रूप से है, इसलिए उर्दू भाषा को पूर्ण रूप से हिंदुस्तानी भाषा कहा जाता है. उर्दू भाषा किसी धर्म संप्रदाय की नहीं बल्कि सारे भारतीयों (हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई) की भाषा है और सभी ने इसको दिल खोलकर अपनाया, आप देख ले कि जो भी फिल्में, गाने, शायरी आदि में अधिकतर उर्दू भाषा का ही प्रयोग होता है।

ये नीचे WIKIPEDIA में उर्दू की परिभाषा दी गयी है जो ये बताता है कि उर्दू पूर्ण रूप से एक हिंदुस्तानी भाषा  है।   

Reference: https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%89%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A5%82_%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B7%E0%A4%BE  

 इसलिए ये कहना कि उर्दू सिर्फ  मुसलमानों की भाषा है तो ये गलत है और कुछ लोग को ऐसा ही लगता है कि उर्दू सिर्फ  मुसलमानो की भाषा है, खासकर कुछ मुसलमान उर्दू भाषा को अपनी धार्मिक भाषा में ही शामिल करते है, अगर आप बाज़ार से पवित्र क़ुरान या पवित्र हदीस शरीफ़ या फिर किसी उलेमा की किताब को आप हदिया (खरीदते) है तो अक्सर आपको सिर्फ उर्दू भाषा की ही अनुवादित ये पवित्र किताबें मिलेंगी। हालांकि अब और भी भाषा में भी अनुवादित किताबे  छापी जा रही है लेकिन इनकी संख्या  बहुत ही कम है और हर जगह दूसरी भाषा की अनुवादित किताबे मौजूद भी नहीं है और उर्दू में अनुवादित किताबे बहुत ही आसानी से मिल जाएँगी।  

अब हम अपने टॉपिक पर आते है और बताते है की क्यों उर्दू भाषा अब मुसलमानों  पर एक बोझ सी  होती जा रही है :

दोस्तों यहाँ एक बात कबीले गौर ये  है कि मुसलमानों में उर्दू बोलने और सुनने वालो की संख्या शायद अधिक हो सकती है लेकिन सही उर्दू पढ़ने और लिखने वाले मुसलमानों की संख्या बहुत ही कम है।  क्योंकि  मुसलमानों की धार्मिक किताबें उर्दू भाषा में या उर्दू में अनुवादित है इसलिए मुस्लिम समाज अपने बच्चों को उर्दू भाषा सिखाने की कोशिश करते है।  बच्चें  थोड़ा बहुत तो उर्दू सीख भी जाते है परन्तु आगे चलकर उर्दू की अलोकप्रिय  और गैरदिलचस्प होने के कारण उर्दू को अच्छी तरह नहीं सीख पाते है।  अगर हम हिंदी और अंग्रेजी भाषा की बात करे तो इनका उपयोग हर जगह होता है और बच्चे भी इसमें रूचि लेते है।  

यहाँ ये बात जानना बहुत जरुरी है कि उर्दू भाषा मुसलमानों की कोई धार्मिक भाषा नहीं है, मुसलमानों की कोई धार्मिक पुस्तक  (पवित्र क़ुरान और पवित्र हदीस शरीफ़) अरबी भाषा में है और उर्दू भाषा का उपयोग अब केवल इन पवित्र किताबों को अनुवाद या किसी उलेमा की किताब ही उर्दू भाषा में  मिलेंगी।  क्योंकि अब उर्दू को जानने वालों की संख्या लगातार कम होती जा रही है, जिसका खामयाज़ा  धर्म के प्रति मुस्लिम समाज के लोगों में अज्ञानता का रूप लेने लगा  है।  इस संदर्भ में यह निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि ‘अब उर्दू भाषा मुसलमानों पर एक बोझ सी होती जा रही है’।  

इसीलिए लेखक का कहना है कि यदि कोई उर्दू भाषा सीखना चाहता तो उसको सीखने दिया जाये मगर आम लोगों के लिए इन पवित्र किताबों का अनुवाद और उलेमाओं की किताब को हिंदी या अन्य प्रचालित भाषा में उपलब्ध करा दी जाए। इससे निश्चित तौर पर मुस्लिम समाज के आम लोगों में  धर्म के प्रति  ज्ञान में और बढ़ोतरी होगी और समाज भी शिक्षित होगा ।  

(नोट):

इस उपर्युक्त विषय पर अपने विचार लिखना ये लेख़क के स्वयं के है इसका किसी भी व्यक्ति से लेनादेना नहीं है, और इसका मकसद किसी की भावनावों को ठेस पहुंचने का नहीं है।   इस विषय का मकसद केवल समाज के लोगों को ज्ञान के प्रति प्रोत्साहित करना है। यदि किसी की भावनावों को ठेस पहुँचती है लेख़क माफ़ी मांगता है, धन्यवाद ।

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