Why Hazrat Ali is called Maula Ali ?

अस सलामों अलैकुम दोस्तों,
अक्सर हम लोग मौला अली का नाम सुनते है चाहे वो बयान में हो या किसी क़व्वाली में हो। लेकिन क्या आप जानते है कि हज़रत अली को मौला अली क्यों कहा जाता है ? आईये हम क़ुरान और हदीस की रोशनी में जानने की कोशिश करते है।
ग़दीर ए ख़ुम की हदीस – Ghadeer e khum hadees
सबसे पहले हम ग़दीर ए ख़ुम की हदीस जानेंगे। जब हमारे नबी (ﷺ) अपने आखिरी हज़ करने निकले जिसको हम हज़्ज़ातुल-विदा के नाम से भी जानते है, इस हज में तक़रीबन सवा लाख सहाबा शामिल हुए थे। जब हज मुक़म्मल हो गया और वापसी कर रहे थे तो 18 ज़िल्हिज्जा को ग़दीर ए ख़ुम की एक जगह पहुंचे और सभी को रुकने का आदेश दिया जो सहाबी आगे निकल गए थे उनको वापस बुलाया गया और जो सहाबी पीछे थे उनको भी बुलाया गया। फिर आपने आदेश दिया कि एक मिम्बर बनाया जाये। तो सहाबा ने ऊटो के कजावे का एक मिम्बर बनाया।
फिर आप (ﷺ) ने अल्लाह पाक की हम्द की और फ़रमाया, “ऐ लोगों करीब है कि मौत का फ़रिश्ता आये और मैं उसको कबूल कर लू। मैं तुममें दो बड़ी चीज़ें छोड़ के जा रहा हू। पहले तो अल्लाह की किताब, इसमें हिदायत और नूर है। और दूसरी चीज़ मेरे अहलेबैत है। मैं तुम्हे अपने अहलेबैत के मामले में अल्लाह याद दिलाता हू , ये तीन बार फ़रमाया। और कहा जो इन दोनों को थामेगा कभी ग़ुमराह नहीं होगा।
फिर जब अल्लाह के रसूल (ﷺ) – ग़दीर ख़ुम में उतरे तो आपने हज़रत अली (अ.स.) का हाथ पकड़ा और फ़रमाया: “ऐ लोगों, क्या तुम नहीं जानते कि मैं ईमान वालों के लिए उनकी अपनी जात से ज्यादा हक़ रखता हूँ?” सभी ने कहा: हाँ. फिर आप (ﷺ) ने कहा: “क्या तुम नहीं जानते कि मैं हर एक मोमिन के लिए उसकी ज़ात से ज्यादा हक़दार हूँ जितना वह स्वयं है?” सभी ने कहा: हाँ. फिर आप (ﷺ) ने कहा: “ऐ ख़ुदा, मैं जिसका मौला हूँ, अली उसका मौला है। ऐ ख़ुदा, जो अली से मुहब्बत करे, तू भी उससे मुहब्बत कर और जो अली का दुश्मन हो, तू भी उसका दुश्मन बन जा।” इसके बाद हज़रत उमर रज़ि० ने उनसे मुलाकात की और उनसे कहा: मुबारक़ हो, ऐ अबू तालिब के बेटे! आप हर मोमिन मोमिनात के मौला है।

इसी सन्दर्भ में, सबसे पहले नीचे कुछ क़ुरान की आयते पेश करता हू, जो रसूलल्लाह (ﷺ) ने ग़दीर ए ख़ुम के मौके पर पढ़ी थी, जो क़ुरान शरीफ की सूरह अहज़ाब की आयत नंबर 6 और सूरह मायदाः की आयत नंबर 67 है।
The Combined Forces (33:6)
ٱلنَّبِىُّ أَوْلَىٰ بِٱلْمُؤْمِنِينَ مِنْ أَنفُسِهِمْ ۖ وَأَزْوَٰجُهُۥٓ أُمَّهَـٰتُهُمْ ۗ وَأُو۟لُوا۟ ٱلْأَرْحَامِ بَعْضُهُمْ أَوْلَىٰ بِبَعْضٍۢ فِى كِتَـٰبِ ٱللَّهِ مِنَ ٱلْمُؤْمِنِينَ وَٱلْمُهَـٰجِرِينَ إِلَّآ أَن تَفْعَلُوٓا۟ إِلَىٰٓ أَوْلِيَآئِكُم مَّعْرُوفًۭا ۚ كَانَ ذَٰلِكَ فِى ٱلْكِتَـٰبِ مَسْطُورًۭا ٦
The Prophet has a stronger affinity to the believers than they do themselves. And his wives are their mothers. As ordained by Allah, blood relatives are more entitled ˹to inheritance˺ than ˹other˺ believers and immigrants, unless you ˹want to˺ show kindness to your ˹close˺ associates ˹through bequest˺. This is decreed in the Record.
यह नबी ईमान वालों पर उनके अपने प्राणों से अधिक हक़ रखने वाले हैं। और नबी की पत्नियाँ उनकी माताएँ हैं। और रिश्तेदार (अहलेबैत), अल्लाह की किताब के अनुसार, (अन्य) ईमान वालों और मुहाजिरों से एक-दूसरे के अधिक हक़दार हैं। सिवाय इसके कि तुम अपने मित्रों के साथ कोई भलाई करो। यह पुस्तक में लिखा हुआ है।
Quran : 33-6
The Table Spread (5:67)
۞ يَـٰٓأَيُّهَا ٱلرَّسُولُ بَلِّغْ مَآ أُنزِلَ إِلَيْكَ مِن رَّبِّكَ ۖ وَإِن لَّمْ تَفْعَلْ فَمَا بَلَّغْتَ رِسَالَتَهُۥ ۚ وَٱللَّهُ يَعْصِمُكَ مِنَ ٱلنَّاسِ ۗ إِنَّ ٱللَّهَ لَا يَهْدِى ٱلْقَوْمَ ٱلْكَـٰفِرِينَ ٦٧
O Messenger! Convey everything revealed to you from your Lord. If you do not, then you have not delivered His message. Allah will ˹certainly˺ protect you from the people. Indeed, Allah does not guide the people who disbelieve.
ऐ रसूल! जो कुछ आपपर आपके पालनहार की ओर से उतारा गया है, उसे पहुँचा दें। और यदि आपने (ऐसा) न किया, तो आपने उसका संदेश नहीं पहुँचाया। और अल्लाह आपको लोगों से बचाएगा। निःसंदेह अल्लाह काफ़िर लोगों को मार्गदर्शन नहीं प्रदान करता।
Quran: 5-67
और फिर रसूलल्लाह (ﷺ) ने ग़दीर ए ख़ुम के मौके पर जो कुछ भी फ़रमाया वो सही हदीसों में मौजूद है, जिनमे, जामे तिर्मिज़ी की हदीस नंबर 3713 और 3786 , मुस्लिम शरीफ की हदीस नंबर 6225 से 6228 तक, मिश्क़ात की हदीस नंबर 6103 , मस्तब्रक अल हाकिम की हदीस नंबर 4576 , और मुसनद अहमद की हदीस नंबर 18671 और 19540 से है :
حَدَّثَنَا مُحَمَّدُ بْنُ بَشَّارٍ، قَالَ حَدَّثَنَا مُحَمَّدُ بْنُ جَعْفَرٍ، قَالَ حَدَّثَنَا شُعْبَةُ، عَنْ سَلَمَةَ بْنِ كُهَيْلٍ، قَالَ سَمِعْتُ أَبَا الطُّفَيْلِ، يُحَدِّثُ عَنْ أَبِي سَرِيْحَةَ، أَوْ زَيْدِ بْنِ أَرْقَمَ شَكَّ شُعْبَةُ – عَنِ النَّبِيِّ صلى الله عليه وسلم قَالَ “ مَنْ كُنْتُ مَوْلاَهُ فَعَلِيٌّ مَوْلاَهُ ” . قَالَ أَبُو عِيسَى هَذَا حَدِيثٌ حَسَنٌ غَرِيبٌ . وَقَدْ رَوَى شُعْبَةُ هَذَا الْحَدِيثَ عَنْ مَيْمُونٍ أَبِي عَبْدِ اللَّهِ عَنْ زَيْدِ بْنِ أَرْقَمَ عَنِ النَّبِيِّ صلى الله عليه وسلم . وَأَبُو سَرِيحَةَ هُوَ حُذَيْفَةُ بْنُ أَسِيدٍ صَاحِبُ النَّبِيِّ صلى الله عليه وسلم .
Narrated Abu Sarihah, or Zaid bin Arqam from the Prophet (ﷺ): “For whomever I am his Mawla then ‘Ali is his Mawla.”
हज़रत ज़ैद इब्न अरकम से रिवायत है कि पैगंबर मुहम्मद (ﷺ) ने फ़रमाया, “जिसका मैं मौला हूं, तो अली उसके मौला हैं।”
Jami` at-Tirmidhi 3713 Grade: Sahih (Darussalam)
حَدَّثَنَا نَصْرُ بْنُ عَبْدِ الرَّحْمَنِ الْكُوفِيُّ، قَالَ حَدَّثَنَا زَيْدُ بْنُ الْحَسَنِ، هُوَ الأَنْمَاطِيُّ عَنْ جَعْفَرِ بْنِ مُحَمَّدٍ، عَنْ أَبِيهِ، عَنْ جَابِرِ بْنِ عَبْدِ اللَّهِ، قَالَ رَأَيْتُ رَسُولَ اللَّهِ صلى الله عليه وسلم فِي حَجَّتِهِ يَوْمَ عَرَفَةَ وَهُوَ عَلَى نَاقَتِهِ الْقَصْوَاءِ يَخْطُبُ فَسَمِعْتُهُ يَقُولُ “ يَا أَيُّهَا النَّاسُ إِنِّي قَدْ تَرَكْتُ فِيكُمْ مَا إِنْ أَخَذْتُمْ بِهِ لَنْ تَضِلُّوا كِتَابَ اللَّهِ وَعِتْرَتِي أَهْلَ بَيْتِي ” .وَفِي الْبَابِ عَنْ أَبِي ذَرٍّ وَأَبِي سَعِيدٍ وَزَيْدِ بْنِ أَرْقَمَ وَحُذَيْفَةَ بْنِ أَسِيدٍ . وَهَذَا حَدِيثٌ حَسَنٌ غَرِيبٌ مِنْ هَذَا الْوَجْهِ . وَزَيْدُ بْنُ الْحَسَنِ قَدْ رَوَى عَنْهُ سَعِيدُ بْنُ سُلَيْمَانَ وَغَيْرُ وَاحِدٍ مِنْ أَهْلِ الْعِلْمِ .
Narrated Jabir bin ‘Abdullah: “I saw the Messenger of Allah during his Hajj, on the Day of ‘Arafah. He was upon his camel Al-Qaswa, giving a Khutbah, so he said: ‘O people! Indeed, I have left among you, that which if you hold fast to it, you shall not go astray: The Book of Allah and my family, the people of my house.'”
नस्र इब्न अब्द अल-रहमान अल-कुफी ने हमें बताया, उन्होंने कहा: ज़ैद इब्न अल-हसन – वह अल-अनमती हैं – ने हमें जाफर इब्न मुहम्मद के अधिकार से, उनके पिता के अधिकार से, जाबिर इब्न अब्दुल्ला के अधिकार से बताया, उन्होंने कहा: मैंने अल्लाह के रसूल (ﷺ) को ‘अराफात’ के दिन हज के दौरान देखा, और वह अपने ऊंट अल-क़स्वा पर बैठे थे, एक उपदेश दे रहे थे। मैंने उसे यह कहते हुए सुना: “ऐ लोगों, मैंने तुम्हारे बीच वह छोड़ा है, जिसे अगर तुम अपने साथ ले लो, तो तुम कभी गुमराह नहीं होगे। अल्लाह की किताब और मेरा परिवार, मेरा घराना।
Jami` at-Tirmidhi 3786 Grade: Sahih (Darussalam)
وَعَنِ الْبَرَاءِ بْنِ عَازِبٍ وَزَيْدِ بْنِ أَرْقَمَ أَنَّ رَسُولَ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ لَمَّا نَزَلَ بِغَدِيرِ خُمٍّ أَخَذَ بِيَدِ عَلِيٍّ فَقَالَ: «أَلَسْتُمْ تَعْلَمُونَ أَنِّي أَوْلَى بِالْمُؤْمِنِينَ مِنْ أَنْفُسِهِمْ؟» قَالُوا: بَلَى قَالَ: «أَلَسْتُمْ تَعْلَمُونَ أَنِّي أَوْلَى بِكُلِّ مُؤْمِنٍ مِنْ نَفْسِهِ؟» قَالُوا: بَلَى قَالَ: «اللَّهُمَّ مَنْ كُنْتُ مَوْلَاهُ فَعَلِيٌّ مَوْلَاهُ اللَّهُمَّ وَالِ مَنْ وَالَاهُ وَعَادِ مَنْ عَادَاهُ» . فَلَقِيَهُ عُمَرُ بَعْدَ ذَلِكَ فَقَالَ لَهُ: هَنِيئًا يَا ابْنَ أَبِي طَالِبٍ أَصْبَحْتَ وَأَمْسَيْتَ مَوْلَى كلَّ مُؤمن ومؤمنة. رَوَاهُ أَحْمد
Al-Bara bin Azib and Zaid b. Arqam told that when God’s Messenger alighted at the pool of Khumm [1] he took `Ali by the hand and asked those present, “Do you not know that I am closer to the believers than they themselves [2]?”and they replied, “Certainly.” He then asked, “Do you not know that I am nearer to every believer than he himself?” and they replied, “Certainly.” He then said, “0 God, he whose patron I am has `Ali as his patron. 0 God, be friendly to those who are friendly to him and hostile to those who are hostile to him.” After that `Umar met him and said, “Congratulations, son of Abu Talib. Morning and evening you are the patron of every believing man and woman.” Near al-Juhfa, a place four stages from Mecca on the way to Medina. cf. Quran, 33: 6.
अल-बरा इब्न अज़ीब और ज़ैद इब्न अरक़म से रिवायत है कि जब अल्लाह के रसूल (ﷺ) – ग़दीर ख़ुम में उतरे तो आपने हज़रत अली (अ.स.) का हाथ पकड़ा और कहा: “क्या तुम नहीं जानते कि मैं ईमान वालों के लिए उनकी अपनी जात से ज्यादा हक़ रखता हूँ?” सभी ने कहा: हाँ. फिर आप (ﷺ) ने कहा: “क्या तुम नहीं जानते कि मैं हर एक मोमिन के लिए उसकी ज़ात से ज्यादा हक़दार हूँ जितना वह स्वयं है?” सभी ने कहा: हाँ. फिर आप (ﷺ) ने कहा: “ऐ ख़ुदा, मैं जिसका मौला हूँ, अली उसका मौला है। ऐ ख़ुदा, जो उससे मुहब्बत करे, तू भी उससे मुहब्बत कर और जो उसका दुश्मन हो, तू भी उसका दुश्मन बन जा।” इसके बाद हज़रत उमर रज़ि० ने उनसे मुलाकात की और उनसे कहा: मुबारक़ हो, ऐ अबू तालिब के बेटे! आप हर मोमिन मोमिनात के मौला है।
Mishkat al-Masabih 6103 – Grade: ضَعِيف (الألباني)
18th Zilhaj – Ghadeer e khum, Quran 33-6, 5-67, Jame Tirmizi Hadees No. 3713, 3786 Mustabrak al Hakim 4576. Mishkat-6103, Sahi Muslim – 2408 / 6228 & 6225, & Musnad Ahmed: 18671 & 19540
अब ऊपर लिखी क़ुरान और सभी हदीसों को पढ़ने के बाद ये बिलकुल साफ़ हो जाता है कि रसूलल्लाह (ﷺ) ने 18 ज़िलहिज़्ज़ा को ग़दीर ए ख़ुम के मौके पर फ़रमाया है कि “जिसके वो मौला है, अली उसके मौला है” . लेकिन हमारे उलेमा न जाने क्यों इन सभी हदीसों को बयान क्यों नहीं करते ? हालांकि ये सारी हदीसें शिया की किताबों से नहीं, बल्कि सुन्नी उलेमा की किताबों में मौजूद है।
ईद ए ग़दीर क्या है और क्या इसको मनाना चाहिए ? Eid e Ghadeer kya hai in hindi
जैसा कि ऊपर बताया गया है कि 18 ज़िलहिज़्ज़ा को रसूलल्लाह (ﷺ) ने ग़दीर ए ख़ुम की जगह पर ये फ़रमाया है कि “जिसके वो मौला है, अली उसके मौला है”. अब उसी 18 ज़िलहिज़्ज़ा को शिया हज़रात और बहुत से सुन्नी हज़रात और सूफ़ी और खानखाह के लोगों के द्वारा ईद ए ग़दीर को मानाने का एहतेमाम किया जाता है। और इसमें लोगो के द्वारा 18 ज़िलहिज़्ज़ा को अच्छा खाना जिसमे कुछ मीठा भी बनाया जाता है और अच्छे कपड़े या नये कपड़े पहन कर खुशियाँ मनाई जाती। और ईद ए ग़दीर के मौके पर मौला अली करम अल्लाहो वजाहुल करीम की शान में बयान व कुछ मनक़बत पेश की जाती है। अगर ईद ए ग़दीर में कोई गैर शरई काम न किया जाये तो, इसको मानाने में कोई हर्ज़ नहीं है। हर कोई जो भी मौला अली का चाहने वाला है वो इसी तरह ईद ए ग़दीर की खुशियों को मानाने का एहतेमाम कर सकता है, और वो जाइज़ है।
निष्कर्ष :
क़ुरान और हदीसों को पढ़ने के बाद ये बिलकुल साफ़ हो जाता है कि रसूलल्लाह (ﷺ) ने 18 ज़िलहिज़्ज़ा को ग़दीर ए ख़ुम के मौके पर फ़रमाया है कि “जिसके वो मौला है, अली उसके मौला है”. अब अली को मौला मानना हर मुस्लमान पर वाज़िब हो जाता है और ये ईमान का हिस्सा बन जाता है, क्योकि जो ऊपर लिखी क़ुरान की आयतों और सही हदीसों को नहीं मानता वो ईमान से खारिज़ भी हो सकता है। अब आपको खुद फ़ैसला करना है कि आपको अल्लाह और उसके रसूल (ﷺ) की बात माननी है या किसी ज़ाहिल मुल्ला की बात माननी है।